तुम्हारी परछाई के आकार ने
मुझे अपनी बाँहों में समेट लिया हैं
मै उसके बाहूपाश से
मुक्त भी नहीं होना चाहता
तुम्हारी स्मृति
मेरे मन के वृत्त का केंद्र बिंदु
बन चुकी हैं
और अब जब मैं
तुम्हारी आत्मा की दहलीज़ कों
लांघने ही वाला हूँ
तुम कहती हो ..
लौट जाओ .......
तुमने यह निर्णय इसलिए तो नहीं ले लिया हैं
की कही ...
तुम्हें डर हैं मेरी ही तरह
तुम भी मुझमे न ड़ूब जाओ
ठीक हैं
मेरा वजूद तो अब रहा नहीं
तुममय हो चुका हैं
आईने में जब भी स्वयं कों निहारता हूँ
तुम दिखाई दे जाती हो
ठीक हैं तुम बची रहो
तभी तो मेरा प्रेम भी शेष रहेगा
मेरी आराध्या ..........
मुझे अपनी बाँहों में समेट लिया हैं
मै उसके बाहूपाश से
मुक्त भी नहीं होना चाहता
तुम्हारी स्मृति
मेरे मन के वृत्त का केंद्र बिंदु
बन चुकी हैं
और अब जब मैं
तुम्हारी आत्मा की दहलीज़ कों
लांघने ही वाला हूँ
तुम कहती हो ..
लौट जाओ .......
तुमने यह निर्णय इसलिए तो नहीं ले लिया हैं
की कही ...
तुम्हें डर हैं मेरी ही तरह
तुम भी मुझमे न ड़ूब जाओ
ठीक हैं
मेरा वजूद तो अब रहा नहीं
तुममय हो चुका हैं
आईने में जब भी स्वयं कों निहारता हूँ
तुम दिखाई दे जाती हो
ठीक हैं तुम बची रहो
तभी तो मेरा प्रेम भी शेष रहेगा
मेरी आराध्या ..........
No comments:
Post a Comment