Tuesday, August 2, 2011

तुम्हारी परछाई के आकार ने

तुम्हारी परछाई के आकार ने

मुझे अपनी बाँहों में समेट लिया हैं
मै उसके बाहूपाश से
मुक्त भी नहीं होना चाहता

तुम्हारी स्मृति
मेरे मन के वृत्त का केंद्र बिंदु
बन चुकी हैं

और अब जब मैं
तुम्हारी आत्मा की दहलीज़ कों
लांघने ही वाला हूँ
तुम कहती हो ..
लौट जाओ .......

तुमने यह निर्णय इसलिए तो नहीं ले लिया हैं
की कही ...
तुम्हें डर हैं मेरी ही तरह
तुम भी मुझमे न ड़ूब जाओ

ठीक हैं
मेरा वजूद तो अब रहा नहीं
तुममय हो चुका हैं
आईने में जब भी स्वयं कों निहारता हूँ
तुम दिखाई दे जाती हो

ठीक हैं तुम बची रहो
तभी तो मेरा प्रेम भी शेष रहेगा
मेरी आराध्या ..........

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